उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी |
पं. गोविन्द बल्लभ पंत
- उत्तराखंड के एक मात्र ‘भारत रत्न’ प्राप्तकर्ता पं. गोविन्द बल्लभ पंंत जी का जन्म 10 सितम्बर 1887 को प्रदेश के अल्मोड़ा जनपद के खूंट गांव में हुआ था।
- उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में पं. गोविन्द बल्लभ पंत जी ने इस पद को 1946 से 1954 तक रहे।
- स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक कुशल राजनेता, प्रख्यात साहित्यकार व नाटककार तथा वकील भी थे।
- भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें हिमालय पुत्र की उपाधि से विभूषित किया था।
- पंत जी ने हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु 1914 में ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की एक शाखा के रूप में काशीपुर में ‘प्रेमसभा’ की स्थापना की।
- पंत जी को 26 जनवरी 1955 को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया।
- गोविन्द बल्लभ पंत जी ने अपने जीवन काल में 40 से ज्यादा अधिक उपन्यास एवं नाटकों की रचनाएं की थी।
- पंत जी की प्रमुख रचनाएं – काशी का जुलाहा, राजमुकुट, अंगूर की बेटी, ययाति, तारिका, एवं सुजाता आदि हैं।
बद्रीदत्त पाण्डे
- बद्रीदत्त पाण्डे जी का जन्म 15 फरवरी 1882 को हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में हुआ था।
- लेकिन इनका मूल निवास एवं शिक्षा का स्थल अल्मोड़ा जनपद रहा है।
- 1913 में ये अल्मोड़ा जनपद से प्रकाशित होने वाले ‘अल्मोड़ा अखबार’ के सम्पादक बने।
- अंग्रेजी शासन के प्रति तीखे एवं व्यंग्यात्मक लेखों के कारण उस समय के डिप्टी कमिश्नर ने सन 1918 को अल्मोड़ा अखबार को प्रतिबंधित कर दिया।
- अल्मोड़ा अखबार प्रतिबंधित होने के बाद इन्होंंने अल्मोड़ा से ‘शक्ति साप्ताहिक’ का प्रकाशन शुरू कर दिया।
- कुली बर्दायश, कुली बेगार, तथा कुली उतार जैसी प्रथाओं के विरूद्ध उनके सफल नेतृत्व के लिए उन्हें ‘कुर्माचल केसरी’ की पदवी से विभूषित किया गया।
- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ये कई बार जेल गये तथा जेल प्रवास के दौरान इन्होंने ‘कुमाऊॅं का इतिहास’ लिखा।
- अपने जीवन में प्राप्त 2 स्वर्ण पदकों को इन्होंने 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय देश के सुरक्षा कोष में दे दिया था।
वीर शेखर शैली
उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी में वीर शेखर शैली एक महत्वपूर्ण नाम हैं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने साहसी और निर्णायक योगदान से उत्तराखंड को गौरवान्वित किया। वीर शैली ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने संगठित सेना के साथ अनेक गुटों में संघर्ष किया और उन्होंने अपनी शौर्यगाथाओं से लोगों का हौसला बढ़ाया। उनका योगदान उत्तराखंडी लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है और उन्हें स्मरण में रखा जाता है जो उनकी शौर्य और पराक्रम की कहानियाँ सुनकर प्रेरित होते हैं।
कालू महरा
- उत्तराखंड के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी के नाम से विख्यात कालू महरा का जन्म सन 1831 में प्रदेश के चम्पावत जिले में स्थित विसुड़ गांव में हुआ।
- 1857 की क्रांति के दौरान इन्होंने कुमाऊँ क्षेत्र में (क्रांतिवीर) नामक गुप्त संगठन बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाया।
श्रीदेव सुमन
- श्रीदेव सुमन का जन्म प्रदेश के टिहरी जिले के जौल गांव में सन 1916 को हुआ था।
- सन 1938 में श्रीनगर में आयोजित राजनैतिक सम्मेलन में भाग लेते हुए इन्होंने गढ़वाल के दोनों खण्डों की एकता पर जोर देते हुए कहा था कि – ‘यदि गंगा हमारी माता होकर भी हमें आपस में मिलाने के बजाय दो हिस्सों में बांटती है तो हम गंगा को काट देंगे।
श्रीदेव सुमन द्वारा कहे गये कथन
- सुमन जी का विचार था कि ‘यदि हमें मरना ही है तो अपने सिद्धान्तों और विश्वास की सार्वजनिक घोषणा करते हुए मरना श्रेयस्कर है।
- जब श्रीदेव सुमन को 30 दिसम्बर 1943 को टिहरी जेल में बंद कर उन्हें यातनाएं दी जाने लगी और माफी मांगने के लिए बाध्य किया गया, किन्तु सुमन ने उत्तर दिया कि ‘ तुम मुझे तोड़ सकते हो, मोड़ नहीं सकते‘ ।
हेमवती नन्दन बहुगुणा
- धरती पत्रु/हिमपुत्र के नाम से विख्यात हेमवती नन्दन बहुगुणा का जन्म प्रदेश के पौढ़ी जनपद बुधाड़ी गांव मे 25 अप्रैल 1919 को हुआ था।
- इन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इलाहाबाद से की और यही से छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने लगे।
- 1957 में ये सर्वप्रथम कांग्रेस से विधानसभा तथा 1972 में इलाहाबाद से लोकसभा के पद पर विजय हुए।
- लेकिन एक वर्ष बाद ही नवम्बर 1973 में इंदिरा जी ने इन्हें उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री का पद प्रदान किया।
- 1975 में एमरजेन्सी के समय इंदिरा जी से मनमुटाव होने के कारण इन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया।
- कांगेश पार्टी छोड़ने के पश्चात 1979 में इन्होंने लोकतांत्रिक समावादी पार्टी का गठन किया। तथा 1984 चरण सिंह के साथ ‘दलित मजदूर किसान पार्टी’ का गठन किया।
- हेमवती नन्दन बहुगुणा ने अपने कार्यकाल में उत्तराखंड के लिए अलग से पर्वतीय विकास मंत्रालय की स्थापना की।
- तथा इन्होंने ‘इण्डियन नाइज हम’ नामक पुस्तक भी लिखी।
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