उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन

उत्तराखंड के वन आंदोलन


वन आंदोलन

समाज के किसी भी क्षेत्र में कुछ बदलाव’ लाने या किसी लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने का अभियान आंदोलन (Protest) कहलाता है। उसी प्रकार से वन आंदोलन वन संबंधित क्षेत्र में पर्यावरण की सुरक्षा या वन को क्षति पहुँचाने वाले कार्यों के विराेध चलाया जाने वाले अभियान वन आंदोलन कहलाता है।

 


उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन

चिपको आंदोलन

चिपको आंदोलन की शुरुआत सन 1972 में वनों की अंधाधुंध व अवैध कटाई को रोकने के उद्देश्य से 1974 में चमोली जिले में गोपेश्वर नामक स्थान पर 23 वर्षीय विधवा महिला गौरी देवी द्वारा की गई थी।

इस आंदोलन के तहत वृक्षों की सुरक्षा के लिए ग्रामीण वासियों द्वारा वृक्षों को पड़कर चिपका जाते थे। इसी कारण इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा।

चिपको आंदोलन के को लेकर महिलाओं द्वारा सन 1977 में एक नारा दिया गया जो काफी प्रसिद्ध हुआ और वह नारा था – “क्या हैं, इस जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी, और बयार, जिंदा रहने के आधार।

हिम पुत्रीयों की लरकार, वन नीति बदले सरकार, वन जागे वनवासी जागे। रेणी गांव के जंगलों में गूंजे ये नारे आज भी सुनाई दे रहे हैं।

 


रंवाई/तिलाड़ी आंदोलन

प्रदेश के टिहरी जिले में स्वतंत्रता से पूर्व जब राजा नरेंद्रशाह का शासन हुआ करता था। और उन्‍होंने उस समय एक वन कानून लागू किया। जिसके तहत यह व्यवस्था की गई कि किसानों की भूमि को भी वन भूमि में शामिल किया जा सकता है।

इस व्यवस्था के खिलाफ रंवाई की जनता ने आजाद पंचायत की घोषणा कर रियासत(शासन) के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। इस आंदोलन के दौरान 30 मई 1930 को दीवान चक्रधर जुयाल की आज्ञा से सेना ने आंदोलनकार‍ियों पर गोली चला दी जिससे सैकड़ो किसान शहीद हो गए थे।

इसी 23 तारीख को इस क्षेत्र में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।  

 


रक्षा सूत्र आंदोलन

यह आंदोलन 1994 में टिहरी के भिलांगना क्षेत्र में शुरू हुआ था। इस आंदोलन का मुख्य कारण था की ऊंचाई वाले वृक्षों को काटने पर लगे प्रतिबंधों के हट जाने के बाद उत्तर प्रदेश वन विभाग द्वारा 2500 वृक्षों पर चिन्‍ह लगाकर काटने की अनुमति देना था।

इससे पहले कि इन वृक्षों को काटा जाता। डालगांव, खवाड़ा, भेटी, भिगुन, तिनगढ़ आदि गांवों की सैकड़ो महिलाओं ने आंदोलन छेड़ दिया। और चिन्‍ह वाले वृक्षों पर रक्षा सूत्र बांधेने लगे।

जिसके परिणाम स्वरूप तात्कालिक तौर पर वृक्षों का कटान रुक गया। इस आंदोलन के कारण आज तक रयाला के जंगलों के वृक्ष चिन्‍ह के बावजूद भी सुरक्षित हैं। इस आंदोलन का प्रभाव उत्तरकाशी अन्‍य जिलों में भी रहा।

इस आंदोलन का नारा

ऊँचाई पर पेड़ रहेंगे/नदी, ग्‍लेशियर टिके रहेंगे/पेड़ कटेंगे, पहाड़ टूटेंगे/बिना मौत के लोग मरेंगे/जंगल बचेगा, देश बचेगा/गाँव खुशहाल रहेगा

 


मैती आंदोलन

मैती आंदोलन की शुरूआत सन 1996 कल्‍याण सिंह रावत ने की थी। मैती शब्‍द को गढ़वाल भाषा में मायका कहते हैं। मायका अर्थात किसी लड़की का विवाह से पहले का घर उसका मायका होता है। 

यह बात उस समय की है, जब कल्‍याण सिंह रावत जी “ग्‍वालदम इण्‍टर कालेज” की छात्राओं को शैक्षिण भ्रमण कार्यक्रम के दौरान बेदनी बुग्‍याला में वनों की देखभाल के लिए छात्राओं की शालीनता से जुटे देखकर कल्‍याण सिंह रावत जी ने महसूस कीया की।

पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में युवतियां ज्‍यादा बेहतर ढंग से कार्य कर सकती है। इसी कल्‍पना या सोच के कारण मैती आंदोलन के संगठन ने आकार लेना शुरू किया। 

आज इस आन्‍दोलन के तहत विवाह समारोह के दौरान वर-वधू द्वारा पौधा रोपने और और इसके बाद मायके पक्ष के लोगों के द्वारा उसकी देखभाल की परम्‍परा विकसित हो चुकी है।

 


झपटो-छीनों आंदोलन

21 जून 1198 को रैणी, लाता, तोलमा आदि गांवों की जनता ने वनों पर परम्‍परागत हम बहाल करने तथा नन्‍दादेवी राष्‍ट्रीय पार्क का प्रबंन्‍धन ग्रामीणों को सौंपने को लेकर लाता गांव में धरना प्रारम्‍भ किया।

15 जुलाई को समीपवर्ती गांवो के लोग अपने पालतू जानवरों के साथ नन्‍दादेवी राष्‍ट्रीय पार्क में घुस गये।

 


डूंगी-पैंतोली आन्‍दोलन

चमोली जनपद के डूंगी-पैंतोली नामक क्षेत्र में बॉंज के वृक्षों को काटे जाने के विरूध में जनता द्वारा चलाया गया आंदोलन है।

यहां के बांज के जंगलों को प्रदेश की सरकार ने उद्यान विभाग को हस्‍तान्‍तरित कर दिया था। जिसे महिलाओं के विरोध के बाद प्रदेश सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा।

बांज वृक्ष को उत्तराखंड का वरदान कहा जाता है। जिस किसी भी स्‍थान ये वृक्ष पाये जाते हैं। वहां न तो पानी की कमी होती और न ही चारे की। इसके साथ इस वृक्ष के कई अनगिनित फायदे हैं।

 

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FAQ – उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन

चिपको आंदोलन की शुरूआत कब और कहां से हुई?

चिपको आंदोलन की शुरूआत सन 974 में चमोली जिले के रैणी गांव नामक स्थान पर 23 वर्षीय विधवा महिला गौरी देवी द्वारा की गई थी।

किस वृक्ष को उत्तराखंड का वरदान कहा जाता है?

बांज वृक्ष को उत्तराखंड का वरदान कहा जाता है।

चिपको आंदोलन की शुरूआत सर्वप्रथम किस जिले से हुई?

चमोली जिले से।

मैती आंदोलन के जनक कौन हैं?

कल्‍याण सिंह रावत मैती आंदोलन का जनक कहा जाता है।

पाणी राखो रक्षा बंधन के सूत्रधार हैं?

सच्चिदानंद भारती।

उत्तराखंड राज्‍य में वनों के नीलामी के विरोध में राज्‍य स्‍तरीय आन्‍दोलन चला था?

सन 1977 से 78 तक।

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