मौलिक अधिकार |
मौलिक अधिकार / Fundamental Rights
भारत ने मौलिक अधिकारों को अमेरिका से लिए हैं। जिन्हें भारतीय संविधान के 3 भाग में रखा गया है। संविधान के 3 भाग में (अनुच्छेद 12 से लेकर के अनुच्छेद 35 तक) हमें मौलिक अधिकारों का विवरण देखने को मिलता है।
मौलिक अधिकारों की शुरूआत
मौलिक अधिकार की शुरूआत सन 1215 में इंगलैंण्ड हुई में एक छोटी-सी क्रांति से हुई थी। उस समय इंग्लैंण्ड के राजा (King Jone) थे। और किंग जॉन ने उस क्रांति के चलते अपने नागरिको को कुछ अधिकार दिये गये। और उन अधिकारों को (मैग्नाकार्टा) कहा गया।
फिर उसके बाद सन 1789 में अमेरिका का संविधान बना। जो दुनिया का पहला लिखित संविधान है। सन 1789 में अमेरिका जो नागरिक थे। उन्हें अमेरिकी संसद द्वारा ( Fundamental Rights ) दिए गये। और जो मौलिक अधिकार सन 1789 में अमेरिका संसद द्वारा अपने नागरिकों जो मौलिक अधिकार दिए गए। उन्हीं मौलिक अधिकारों को भारत ने अपने संविधान में लिया।
जिन्हें भारत ने भारतीय संविधान के 3 भाग में रखा। जिसमें Artical 12 से लेकर के Artical 35 तक मौलिक अधिकार दिए गये हैं।
अब प्रश्न उठता है कि आखिर हम इन अधिकारों को मौलिक अधिकार क्यों कहते हैं
हम इन अधिकारों को मौलिक अधिकार इसलिए कहते हैं, क्योंकि ये हमें संविधान के द्वारा प्रदान किये गये हैं। साथ-ही-साथ संविधान में ये कहा गया है, कि इन अधिकारों का सरकार उल्लंघन नहीं कर सकती है। अर्थात कोई भी सरकार (Goverment) ऐसा कानून नहीं बनायेगी जो मौलिक अधिकारों के विपरीत हो। इसीलिए इन अधिकारों को मौलिक अधिकार कहा जाता है।
Example –
(Artical 19) में हम सबको व्यापार करने का अधिकार दिया गया है। अब मान लीजिए की सरकार ने एक कानून बनाया। और सरकार ने कहा कि अब भारत में सिर्फ और सिर्फ शिक्षित लोग ही व्यापार कर सकते हैं। अर्थात भारत में हर कोई व्यापार नहीं कर सकता।
तो सरकार के इस कानून ने क्या किया कि जो Artical 19 के द्वारा हमें व्यापार करने का अधिकार मिला था। उसका क्या कर दिया उसका उल्लंघन कर दिया। तो फिर क्या होगा।
तो फिर हमारे यहां पर Supreme Court (संविधान का संरक्षक) बैठा है। जिसे हम Guardian Of Constitution कहते हैं। तो (Supreme Court) के पास ये मामला जायेगा। और (Supreme Court) इस कानून को निरस्त कर देगा।
अब प्रश्न उठता (Supreme Court) इस कानून को निरस्त क्यों करेगा। क्योंकि ये कानून हमारे मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 19) का उल्लंघन कर रहा है। इसलिए (Supreme Court) इस कानून निरस्त करेगा।
मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं, तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त हैं।
यहांं पर एक शब्द आया है, मौलिक अधिकार कैसे हैं, Justifiable (न्याय योग्य) हैं। और इन्हें वाद योग्य भी कहा जाता है। न्याय योग्य होने का मतलब होता है, कि इन अधिकारों के उल्लंघन पर हम (Court) न्यायालय के पास जा सकते हैं।
तो मौलिक अधिकार ऐसे अधिकार होते हैं, जिनके यदि उल्लंघन किया जाय। तो उसके (Against) हम न्यायालय जा सकते हैं। इसीलिए ये मौलिक अधिकार न्याय योग्य या वाद योग्य हैं।
भारतीय नागरिकों को प्राप्त छ: मौलिक अधिकार
अधिकार (Rights) | अनुच्छेद (Articals) | Number Of Rights |
1. समानता का अधिकार | अनुच्छेद 14 से 18 तक | 5 |
2. स्वतंत्रता का अधिकार | अनुच्छेद 19 से 22 तक | 4 |
3. शोषण के विरूध अधिकार | अनुच्छेद 23 से 24 तक | 2 |
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार | अनुच्छेद 25 से 28 तक | 4 |
5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार | अनुच्छेद 29 से 30 तक | 2 |
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार | अनुच्छेद 32 | 1 |
मौलिक अधिकार की परिभाषा –
इन अधकिारोंं को मौलिक अधिकार इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये देश के संविधान द्वारा हमें प्रदान किये गये हैं। तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता है।
वर्तमान समय में भारत के संविधान में छह मौलिक अधिकार हैं।
जब भारतीय संविधान का निर्माण हुआ था। तो उस समय भारतीय संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे। फिर क्या हुआ कि सन (1978 में 44वां संविधान संशोधन) किया गया। और इस 44वां संविधान संशोधन 1978 के द्वारा जो संपत्ति का अधिकार (Property rights) था। उसे खत्म कर दिया गया। और इस 44वां संविधान संशोधन 1978 के बाद अब भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकार हैं।
अनुच्छेद (12) –
अनुच्छेद (12) में राज्य को परिभाषित किया गया है।
इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, ”राज्य” के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान-मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12 में Basically राज्य की परिभाषा (Defenation of State) दी गयी है। अनुच्छेद 12 कहता है कि राज्य क्या होता है अर्थात एक राज्य की परिभाषा क्या होगी।
इस अनुच्छेद के तहत राज्य का अर्थ होगा – ”भारत सरकार” व ”राज्यों सरकारें”, इसके अलावा ”भारत सरकार की विधायिका” अर्थात संसद और ”राज्यों की विधायिका” अर्थात विधान सभाएं और विधान परिषद, और ”स्थानीय संस्थान”।
अर्थात जहां-जहां पर सरकार की Involvement होती है। उन सभी को राज्य के अन्तर्गत परिभाषित किया जायेगाा। और राज्य को संविधान के किस अनुच्छेद में परिभाषित किया गया है। राज्य को (अनुच्छेद 12) में परिभाषित किया गया है।
अनुच्छेद 13 –
1. प्रावधान – मूल अधिकारों असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियॉं
2. प्रावधान – राज्य ऐसी कोई भी विधि नहीं बनायेगा जो इस भाग द्वारा प्रदत अधिकारों को छीनती है, या न्यून करती है। और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होती है।
अनुच्छेद 13 में दो सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान है।
- पहला अनुच्छेद 13 (2)
- दूसरा अनुच्छेद 13 (3)
अनुच्छेद 13 के प्रावधान (2) के तहत राज्य कोई ऐसा कानून नहीं बनायेगा। जो इस भाग के द्वारा प्रदत अधिकार यहां पर इस भाग का मतलब होगा – भाग (3)। तो भाग तीन मे आप जानते हैं कि अनुच्छेद (12) से लेकर अनुच्छेद (35) तक हमें कुछ अधिकार दिए गये हैं। तो Artical 13 का प्रावधन 2 कहता है, कि राज्य ऐसा कोई कानून नहीं बनायेगा। जो इस भाग के द्वारा प्रदत अधिकार अर्थात ( मौलिक अधिकारों ) का उल्लंघन करें।
अर्थात Artical 13 के प्रावधान मे स्पष्ट कह दिया गया है कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। और अगर राज्य कोई भी ऐसा कानून बनाता है, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। तो उन कानूनों का समाप्त कर दिया जायेगा। और समाप्त करने का अधिकार भारत में न्यायपालिका के पास होता है। और अनुच्छेद 13 (2) को ही Base बनाकर न्यायपालिका को न्याय पुन:अवलोकन की शक्ति मिलती है। जो भारत ने अमेरिका के संविधान से Adopt की है।
न्याय पुन:अवलोकन शक्ति के तहत न्यायपालिका भारत सरकार या राज्य के किसी भी सरकार द्वारा बनाये गये किसी भी नियम या किसी कानून में ये जाँच कर सकती है, कि क्या ये नियम या ये कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं कर रहे हैं। और अगर वो उल्लंघन कर रहे हैं। तो अनुच्छेद 13 (2) के तहत न्यायपालिका न्याय पुन:अवलोकन शक्ति का उपयोग करके वो इन सब अधिकारों को शून्य घोषित कर सकती है।
3. प्रावधान – विधि के अंतर्गत भारत के राज्य क्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढि़ या प्रथा है।
यहां पर विधि शब्द को संविधान के अनुच्छेद 13 (2) में परिभाषित किया गया।
समता का अधिकार
समता के अधिकारों को पांच भागों में बाँटा गया है।
अनुच्छेद | उसका विवरण |
अनुच्छेद 14 | ( विधि के समक्ष समता ) |
अनुच्छेद 15 | ( धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेेदका प्रतिषेध ) |
अनुच्छेद 16 | ( लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता ) |
अनुच्छेद 17 | ( अस्पृश्यता का अंत ) |
अनुच्छेद 18 | ( उपाधियों का अंत ) |
अनुच्छेद (14) –
विधि के समक्ष समता – राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
अनुच्छेद (14) में विधि के समक्ष समता की बात की गयी है। अर्थात अनुच्छेद (14) विधि के समक्ष समता की बात करता है। लेकिन जो अनुच्छेद (14) है, इसने दो बातों की चर्चा की है।
- जिसमें पहली बात है, विधि के समक्ष समता ।
- और दूसरी बात विधियो के समान संरक्षण।
1. विधि के समक्ष समता
विधि के समक्ष समता का ये (Concept) हमने ब्रिटेन से लिया है। और इस (Concept) के जनक (डायसी) को कहा जाता है। जो एक राजनैतिक दार्शनिक थे। विधि के समक्ष समता का अर्थ होता है, कि कानून की नजर में सभी (व्यक्ति समान) हैं। अर्थात भारत में ये जो कानून हैं ये सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होंगे।
जैसे – मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने किसी दूसरे व्यक्ति का मर्डर किया तो उसकी सजा भारत में अगर मान लीजिए आजीवन कारावास है, तो ये जो आजीवन कारावास की सजा है, ये सभी व्यक्तियों के लिए समान होगी। चाहे वो व्यक्ति बिल्कुल गरीब हो या चाहे वो व्यक्ति अडानी जी की तरह अमीर या देश का नेता हो या चाहे वह व्यक्ति देश का प्रधान मंत्री हो। सभी के लिए ये सजा एक समान होगी।
2. विधियों का समान संरक्षण
विधियों का समान संरक्षण का ये (Concept) हमनें अमेरिका से लिया है। और ये नियम कहता है समान परिस्थिति वाले व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार।
अर्थात इसका अर्थ है कि अमेरिका के संविधान से जो हमनें ये विधियों का समान संरक्षण लिया है इसका अर्थ ये हुआ कि ठीक है कि आप मर्डर के लिए सभी व्यक्तियों के लिए एक समान सजा दीजिए।
लेकिन आप पहला काम ये किजिए कि भारत में जो आसमानता है। इसका मतलब हुआ कि भारत में कुछ आपको बहुत अमीर लोग मिलेंगे और कुछ आपको बहुत गरीब लोग भी मिलेंगे है। तो अब विधियों का समान संरक्षण का कानून कहता है कि पहले इन दोनों प्रकार के लोगों या सभी प्रकार के लोगों को एक समान स्तर पर लेकर आये। अर्थात भारत में ये जो असमानता व्यापता है इसको खत्म किजिए और सभी लोगों को एक समान स्तर पर लेकर के आये।
जब सभी लोग एक समान स्तर पर आ जाये तब आप इन सब के लिए एक समान कानून बनायेंगे। और इसी (Concept) निकल कर आया है, संरक्षणात्मक विभेद का सिद्धांत। अर्थात आप भारत में लोगों के साथ भेद-भाव कर सकते हैं, पर उस भेदभाव का आधार लोगों के बीच समानता स्थापित करना होना चाहिए।
विधि के समान संरक्षण इसी (Law) के कारण भारत में ( SC-ST ) OBC और हाल ही में EWS आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों को आरक्षण दिया गया है। क्यों दिया गया है क्योंकि वो समाज की मुख्य धारा का हिस्सा नहीं है। और समाज में कुछ पीछे की ओर चले गये हैं।तो उन सभी लोगों को एक समान स्तर देने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है साथ-ही-साथ इसी (Law) के आधार पर महिलाओं और बच्चों के लिए भी विशेष प्रावधान किये गये हैं। जिसमें महिलाओं को (6 महीने का मातृत्व अवकाश) मिलता है। और को (Free Education) मिलती है।
अनुच्छेद (15 )
पहला प्रावधान – राज्य, किसी नागरिक के विरूद्ध केवल ( धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान ) या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
अनुच्छेद 15 में (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान ) पॉंच आधार बताये गये हैं। अर्थात जो राज्य है वो किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति लिंग, जन्मस्थान और मूलवंश ) इन पॉंच चीजों के आधार पर भेद-भाव नहीं करेगा।
दूसरा प्रावधान – अनुच्छेद 15 (2) में कहा गया है कि सड़क, रेल, दुकान, किसी भी सार्वजनिक स्थान पर भेद-भाव नहीं किया जायेगा।
तीसरा प्रावधान – अनुच्छेद 15 (3) प्रावधान कहता है कि जो राज्य है ऐसे लोग जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। उनके लिए राज्य विशेष प्रावधान बना सकता है।
चौथा प्रावधान – अनुच्छेद 15 (4) प्रावधान में शैक्षिणक आरक्षण दिया गया है।
हाल ही संविधान में जो 103वां संविधान संशोधन हुआ। उसके द्वारा भारतीय संविधान में दो (Section) दो नये प्रावधानों को जोड़ा गया है। वो अनुच्छेद 16 और 15 में जोड़े गये। अनुच्छेद 15 में जोड़ा गया 15 (6) और अनुच्छेद 16 में जोड़ा गया 16 (6)।
अनुच्छेद 15 (6) में जोड़ा गया है, जो राज्य है, वो (EWS) आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों के लिए विशेष प्रावधान या कानून बना सकता है।
संविधान में संशोधन दो प्रकार के होते हैं।
- सामान्य संशोधन।
- संविधानिक संशोधन ।
सामान्य संशोधन – जब कहीं पर केवल संशोधन की बात आती है। तो इसका मतलब होता है, कि उस में सिर्फ संशोधन (सुधार) कीया जा रहा है। हाल हि में मानव अधिकार अधिनियम में संशोधन हुआ था।
संविधानिक संशोधन – लेकिन जब हम संविधानिक संशोधन की बात आती है। तो इसका मतलब होता है कि आप संविधान को बदल रहे हैं। आप संविधान में या तो कोई नहीं चीज जोड़ रहे हैं। या किसी चीज को अलग कर रहे हैं।
अनुच्छेद 16 –
लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता – केवल (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास) या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद (भेद-भाव) नहीं होगा।
अर्थात अनुच्छेद 16 कहता है कि राज्य जितनी भी सरकारी नौकरीयां (Public employment) निकालेगा। उनमें भेद-भाव (Discrimination) नहीं करेगा। किस आधार पर भेद-भाव नहीं करेगा। न तो धर्म के आधार पर, न तो जाति के आधार पर न तो लिंग के आधार पर, न तो जन्म स्थान के आधार पर, न तो उद्भव के आधार पर, न तो निवास के आधार पर, और न ही मूलवंश के आधार पर। तो 7 आधारों पर राज्य भेद-भाव नहीं करेगा।
अनुच्छेद 17
”अस्पृश्यता” का अतं किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। ”अस्पृश्यता” से उपजी किसी निर्योषयता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
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FAQ – मौलिक अधिकार
मौलिक अधिकारों को मौलिक अधिकार इसलिए कहते हैं, क्योंकि ये हमें संविधान के द्वारा प्रदान किये गये हैं। साथ-ही-साथ संविधान में ये कहा गया है कि इन अधिकारों का सरकार उल्लघन नहीं कर सकती है। अर्थात कोई भी सरकार (Goverment ) ऐसा कानून नहीं बनायेगी जो मौलिक अधिकारों के विपरीत हो। इसीलिए इन अधिकारों को मौलिक अधिकार कहते हैं। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक हैं। भारत ने मौलिक अधिकारों को अमेरिका से लिया है। मौलिक अधिकारों की शुरूआत सन 1215 में इंगलैंण्ड में एक छोटी-सी क्रांति हुई। उस समय इंग्लैंण्ड के राजा King Jone थे। तो किंग जॉन ने उस क्रांति के चलते कुछ अधिकार दिये। और उन अधिकारों को मैग्नाकार्ट कहा गया। तो यहां से मौलिक अधिकार की शुरूआत होती है। मौलिक अधिकारों के तहत ( अनुच्छेद 12 ) में राज्य को परिभाषित किया गया है। भारतीय संविधान में ”विधि के समक्ष समता” का ( Concept ) ब्रिटेन से लिया गया है। विधि के समक्ष समता का Concept ( डायसी ) द्वारा दिया गया है। जो एक राजनैतिक दार्शनिक थे। अनुच्छेद 15 के प्रावधान (2) में कहा गया है, कि सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया जायेगा। अनुच्छेद 15 के (4) प्रावधान में । मूल भारतीय संविधान में 7 मौलिक अधिकार दिये गये थे। सन 1978 में 44वां संविधान संशोधन के द्वारा संपत्ति का अधिकार (Right to Property) को खत्म किया गया। और इस 44वां संविधान संशोधन 1978 के बाद भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकार रह गये हैं।मौलिक अधिकार क्या होते हैं?
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को कहां किस भाग में रखा गया है?
भारत ने मौलिक अधिकारों को कहां से लिया है?
मौलिक अधिकारों की शुरूआत कहां से हुई है?
मौलिक अधिकारों के तहत किस अनुच्छेद में राज्य को परिभाषित किया गया है?
भारतीय संविधान में ”विधि के समक्ष समता” का (Concept) कहां से लिया गया है?
”विधि के समक्ष समता” का (Concept) किसके द्वारा दिया गया है।
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में कहा गया है, कि सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया जायेगा।
भारत में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य विशेष वर्गों को शैक्षिणक आरक्षण किस अनुच्छेद में दिया गया है।
मूल भारतीय संविधान में कितने मौलिक अधिकार दिये गये थे?
किस संविधान संशोधन के तहत संपत्ति के अधिकार को हटाया गया?