उत्तराखंड का प्रागैतिहासिक काल

उत्तराखंड का प्रागैतिहासिक काल

 


उत्तराखंड का प्रागैतिहासिक काल

पुरापाषाण काल 

राज्य में पुरापाषाण काल के साक्ष्य कालसी के पास यमुना तट पर, तथा श्रीनगर के पास अलकनंदा नदी तट पर, व अल्मोड़ा में खुटानी नाला  के पास, तथा व रामगंगा घाटी आदि स्थलों से मिले हैं। पुरापाषाण काल का प्रमुख उपकरण मुष्ठि कुठार है।


मध्‍य पुरापाषाण काल

राज्‍य में मध्‍यपुरापाषाण काल के साक्ष्‍य श्रीनगर के निकट मिले हैं। इस काल के प्रमुख उपकरण शल्‍क व खुर्चनियां हैं।

 

उच्‍च पुरापाषाण काल

उच्‍च पुरापाषाण काल के उपकरण राज्‍य में अभी तक नहीं मिले हैं। इस काल के प्रमुख उपकरण ‘चमकदार फलक‘ व ‘तक्षणियां‘ है।

पूरा पाषाण काल के बाद मध्य पाषाण काल शुरूवात हुई, इस कल के उपकरण छोटे व तीक्ष्‍ण होते थे। इसलिए इस काल के उपकरणों को सूक्ष्‍माश्‍म कहा जाता है।  राज्य में इस काल के कुछ उपकरण ‘जसकोट‘ पौढ़ी जनपद से मिले हैं।

 


पाषाण युगीन मानव गुफाओं या शैलाश्रयों में निवास करता था। राज्य में इस तरह की गुफाएं चमोली वह अल्मोड़ा जिलों में मिली हैंं।

  • डा. एम. जोशी द्वारा राज्‍य में सर्वप्रथम सन 1968 में अल्मोड़ा शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सुयाल नदी के तट पर स्थित लाखु उडयार की खोज की गयी।
  • यहां सामूहिक नृत्य करते हुए आदमियों के दो समूह, शिकार करते आदमियों के एक समूह व कुछ पशु-पक्षियों के चित्र अंकित हैं।
  • यहां के चित्रों को सफेद, गेरूगुलाबीकाले रंगों से सजाया गया है।

 

लाखु उडियार से कुछ दूरी पर डा. यशोधर मठपाल ने सन 1985 में फड़का नौली शैलाश्रय तथा  1989 में पेटशाल शैलाश्रय की खोज की थी। इन दोनों शैलाश्रयों के चित्र नष्ट हो चुके हैं।

  • फड़का नौली के पास 3 अन्‍य चित्रयुक्‍त शैलाश्रय हैं।

 

अल्मोड़ा शहर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित फलसीमा नामक स्थान के निकट एक चित्रित शैलाश्रय है।

दिनापानी (अल्मोड़ा) से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ल्‍वेथाप नामक स्थल पर लाल रंग से चित्रित शैलाश्रय हैं। यहां के शैलाश्रय में शिकारनृत्य मुद्रा में मानव चित्र हैं।

 

चमोली

चमोली में अलकनंदा नदी के किनारे डूंगरी गांव के पास स्थित ग्‍वारख्‍या उडियार में मानव व पशुओं सहित कुल 41 चित्र हैं जो गुलाबी वह लाल रंग से चित्रित हैं। राज्य के सभी शैलश्रयों में सबसे सुंदर चित्र यही के हैं।

  • चमोली के थराली के पास स्थित किमनी गांव के निकट हल्के सफेद रंग के चित्रित एक शैलाश्रय है।

 

उत्तरकाशी में यमुना घाटी में स्थित पुरोला संकल्प में उत्तीर्ण काले रंग का आलेख प्राप्त हुआ है

प्रदेश में महापाषाण कालीन शवाधान, मृदभांड ओखली, सिष्‍ट, दीर्घाष्‍म, आदि के साक्ष्य नौलग्राम पश्चिमी रामगंगा घाटी (अल्मोड़ा)  मुनिया की ढाई अल्मोड़ा, देवीधुरा चंपावत, गोपेश्वर, मलारी (चमोली) पूर्वी नायर घाटी पौड़ी व जस्टकोट आदि स्थलों से मिले हैं

 

दो यशोधर मतपाल द्वारा पश्चिमी राम गंगा घाटी में स्थित नौलग्राम से 73 ओखलिया प्राप्त की गई है जिसे केंद्र सरकार द्वारा सन 2023 में इसे सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया

 

चंपावत के देवी धारा में कप मार्क की खोज डॉक्टर एमपी जोशी द्वारा की गई जबकि गोपेश्वर में पश्चिमी नियर घाटी में कप मार्क की खोज डॉक्टर यशवंत काटोच द्वारा की गई।

 

राज्य में धातु कालीन युग के साक्ष्यप पिथौरागढ़ के बनकोट से आठ ताम्र मानव कृतियां जिले के ही नैनी पटल से पांच ताम्र मानव कर दिया अल्मोड़ा जिले से कुछ मानव कृतियां हरिद्वार जिले के बाद दरबार से ताम्र उपकरण आदि प्राप्त हुए।

 

गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधार्थियों द्वारा चमोली जिले के मुरारी गांव में किए गए कई सर्वेक्षण परिणाम स्वरुप कुछ लोहा उपकरण एक वृषभ कंकाल समाधान एक मानव कंकाल वह उसके ऊपर स्वर्ण मुकुटा एकादशी का कटोरा 10 मिट्टी के पत्र व कुछ हत्या युक्त काली चित्रित त्रिशूल विद्वान प्राप्त हुए हैं

 

प्रागैतिहासिक काल का मानव गुफा में निवास करता था और उसकी दीवारों को सुंदर-सुंदर चित्रों में से ज्यादा था अपने भोजन की पूर्ति को शिकार व विभिन्न फलों कांडों का संगठन करके करता था शिकार हुआ अन्य कार्यों के लिए तरह-तरह के पशन उपकरणों का उपयोग करता था परांतर में वह धातु वह आज से ही से भी परिचित है।

 

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