उत्तराखंड के प्रमुख मेले |
पिथौरागढ़ जिले प्रमुख मेले
जौलजीवी मेला
जौलजीवी मेला उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में स्थित (धारचूला नामक स्थान) के पास काली एवं गौरी नदी के संगम पर प्रतिवर्ष 14 नवम्बर से 19 नवम्बर तक लगता है।
- इस मेले की शुरूआत अस्कोट के पाल शासक (गजेंद्र बहादुर पाल) ने मार्गशीर्ष संंक्रांन्ति को की थी।
- इस मेले में भारत के साथ-साथ नेपाल की भी भागीदारी रहती है।
- इस मेले में दारमा, व्यास, जौहार आदि जनजाति बहुल क्षेत्रों के लोग ऊनी उत्पादन अर्थात ऊन से बने वस्तुएं जैसे कालीन, पश्मीने, पंखियॉं, दन, चुटके लेकर पहुँचते हैं।
अल्मोड़ा जिले के प्रमुख मेले
श्रावणी मेला
श्रावणी मेला अल्मोड़ा जनपद के जागेश्वर धाम में प्रतिवर्ष श्रावण मे एक माह तक चलने वाला श्रावणी मेला है। जिसे (सैण की शिवरात) मेला भी कहते हैं।
- 12 वीं से 13वीं सदी में बने इस मन्दिर में श्रावण माह के शुभ अवसर पर महिलाएं सन्तान प्राप्ति के लिए रात भर घी का दीपक हाथ में थामे पूजा-अर्चना करती है। तथा संतान प्राप्ति हेतु आशीर्वाद मांगती है।
- इस दौरान लोक कलाकार अपनी काल का प्रदर्शन करते हैं।
- तथा ढोल-नागाड़ों व हुड़के की मधुर थाप पर ग्रामीण लोग नाचते यहां पहुँचते हैं।
सोमनाथ मेला
अल्मोड़ा जनपद के रानीखेत नामक क्षेत्र में रामगंगाा नदी के तट पर ‘पाली-पछाऊँ मासी’ क्षेत्र में वैशाख महिने के अंतिम रविवार से सोमनाथ का यह मेला शुरू होता है।
- इस मेल में पहले दिन की रात्रि में ‘सल्टिया मेला‘ तथा दूसरे दिन ‘ठुक कौतीक‘ (बड़ा मेला) लगता है। जिसमें पशुओं का क्रय-विक्रय अधिक होता है।
- ‘ठुक कौतीक‘ के बाद ‘नान् कौतीक‘ (छोटा) मेला लगता है। जिसमें झोड़े, चांचरी, भगनौल, बैर, तथा छपेली गीत गायन के साथ नृत्य किया जाता है।
चम्पावत जिले के प्रमुख मेले
बग्वाल मेला (आषाढ़ी कौथिक)
चम्पावत के (देवीधुरा) में प्रतिवर्ष श्रावण मास में आषाढ़ी कौथिक अर्थात बग्वाल मेले का आयोजन किया जाता है।
- इस मेले का मुख्य आकर्षण रक्षाबन्धन (श्रावण पूर्णिमा) को आयोजित किया जाने वाला बग्वाल अर्थात पाषाण युद्ध है।
- इस आयोजन की प्रमुख विशेषता ‘द्योको‘ द्वारा एक-दूसरे पर पत्थरों की वर्षा (बग्वाल) करना होता है।
- बग्वाल नाम से प्रसिद्ध इस मेले में चम्याल, वालिक, गहड़वाल, तथा लमगड़िया 4 खेमों के लोग भाग लेते हैं।
- पत्थरों से खेले जाने वाले इस युद्ध के खिलाड़ी को ‘द्योके‘ कहा जाता है।
- तथा इस युद्ध की समाप्ती पुजारी की मध्यस्थता व शांति पाठ से समाप्त हाता है।
- बग्वाल नाम से प्रसिद्ध देवीधुरा के इस मेले को उत्तराखंड राज्य सरकार द्वारा 11 जुलाई 2022 को राजकीय मेले के रूप में मान्यता दी गई।
- उल्लेखनीय है कि राज्य के अल्मोड़ा जनपद के ताकुला ब्लाक के पटिया क्षेत्र के पचघटिया में दिपावली के उत्सव को देवीधुरा में आयोजित किया जाने वाला बग्वाल मेले की तरह (एक-दूसरे पर पत्थर फेक कर मनाया जाता है।
पूर्णागिरी मेला
राज्य के चम्पावत जिले के टनकपुर क्षेत्र में अन्नपूर्णा शिखर पर स्थित श्री पूर्णागिरी मन्दिर में प्रतिवर्ष चैत्र व आश्र्विन कीनवरात्रियों में 30-40 दिनों का मेला लगता है।
- अन्नपूर्णा शिखर पर स्थित पूर्णागिरी देवी की गणना देवी भगवती के 108 सिद्ध पीठों में की जाती है।
- ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती की नाभि गिरी थी।
ऊधमसिंह नगर जिले के प्रमुख मेले
चैती (बाला सुन्दरी) मेला
प्रदेश के ऊधमसिंह नगर के काशीपुर के पास स्थित कुण्डेश्र्वरी देवी (बाला सुन्दरी) के मन्दिर में प्रतिवर्ष चैती का मेला लगता है।
- देवी बालासुन्दरी कुमाऊँ के ‘चन्दवंशीय राजाओं की कुलदेवी‘ मानी जाती है।
- अष्टमी के दिन देवी को पालकी में बिठाकर मेला स्थल में लाया जाता है। तथा देवी की स्वर्ण प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया जाता है।
चमोली जिले के प्रमुख मेले
नन्दादेवी मेला
यदि उत्तराखंड के प्रमुख मेले की बात की जाए तो हिमालय की पुत्री मां नन्दा देवी की पूजा-अर्चना के लिए प्रत्येक वर्ष भाद्र पक्ष की पंचमी से राज्य के गढ़वाल एवं कुमाऊ दोनों मण्डलों के कई स्थानों पर मां नन्दादेवी का मेले लगते हैं।
- मां नन्दादेवी का मेले का आयोजन गढ़वाल क्षेत्र में नौटी, कुरूड़, गैर, देवराड़ा, तथा सिमली में किया जाता है।
- वहीं नन्ददेवी के मेले का आयोजन कुमाऊ क्षेत्र में मिलम, कोटभ्रामरी, अल्मोड़ा, नैनीताल, तथा बागेश्वर आदि स्थानों पर किया जाता है।
हरयाली पूड़ा मेला
कर्णप्रयाग (चमोली) के नौटी गांव में चैत्रमास के पहले दिन हरियाली पूड़ा मेला लगता है।
- इस दिन नौटी गांव के लोग नंदा देवी को धियाण मानते हुए उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
- इस अवसर पर ध्याणियॉं (विवाहित लड़कियॉं) अपने मायके आती है। तथा घर-परिवार के सदस्य उन्हें उपहार देते हैं।
गौचर मेला
गौचर मेले शुरूआत गढ़वाल के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर बर्नेडी ने ‘मानाघाटी’ के प्रसिद्ध समाजसेवी ‘गोविंद प्रसाद नौटियाल की सहायता सन 1943 से शुरू किया था।
- उस समय इस मेले का उद्देश्य सीमांत क्षेत्रवासियों को क्रय-विक्रय का एक मंच प्रदान कराना था।
- वर्तमान में पं. जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर होने वाले इस ऐतिहासिक मेले में उत्तराखंड के विकास से जुड़ी विभिन्न संस्कृतियों का खुल का प्रदर्शन किया जाता है।
जैठपुजै मेला
प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला यह मेला चमोली जनपद के माणा गॉंव में लगता है।
- इस मेले में मुख्य रूप से ‘भोटिया जनजाति की महिलाओं एवं युवाओं की भागीदारी रहती है।
- जो मेले में ‘ढोल व दमाऊँ की थाप पर मांगलिक गीत गाये जाते हैं।
उत्तरकाशी जिले के प्रमुख मेले
बिस्सू मेला
बिस्सू मेला उत्तरकाशी के भुटाणु, टिकोची, किरोली, मैंजणी, आदि गांवों में सामूहिक रूप प्रतिवर्ष से लगता है।
- ‘विषुवत संक्रान्ति‘ के दिन लगने के कारण इस मेले को ‘बिस्सू मेला‘ कहा जाता है।
- यह मेला धनुष-बाणों से रोमांचकारी युद्ध के लिए प्रसिद्ध है।
- ढोल-दमाऊ की थाप तथा रणसिंघे के तुमुलनाद के साथ आरम्भ होने वाले इस युद्ध क्रीड़ा को स्थानीय भाषा में ठोटा खेलना कहा जाता है।
- इस युद्ध में भाग लेने वाले कौतिक्यारों को ‘ठोटोरी‘ कहा जाता है।
- इस युद्ध में ठोटोरीयों के दो दल होते हैं। एक दल धनुष-बाण संभालता है। जबकि दूसरा दल फरसा संभालता है।
उत्तरकाशी जिले के अन्य प्रमुख मेलों में बौखनाग मेला, सेकूल मेला, कण्डक तथा खरसाली मेला है।
Read – उत्तराखंड के प्रमुख कलाकार
देहरादून जिले के प्रमुख मेले
जागरा मेला (हनोल)
जौनसार-बावर क्षेत्र के सबसे बड़े देवता एवं सिद्धपीठ श्री महाल देवता के मंदिर हनोल (देहरादून) में आयोजित किया जाता है।
- यह पारंपरिक मेला जौनसारी-बावर लोगों की श्रद्धा, आस्था, एवं उल्लास का प्रतीक है।
- इस मेले के प्रति बढ़ती आस्था एवं उसकी भव्यता के कारण राज्य सरकार द्वारा अगस्त 2022 को इसे राजकीय मेले के रूप में मान्यता दी गयी।
टिहरी जिले के प्रमुख मेले
मौणा मेला
टिहरी के जौनपुर ब्लॉक के ‘अलगाड़ नदी‘ में प्रतिवर्ष इस मेले का आयोजन किया जाता है।
- जिसमें ग्रामीण लोगों के साथ-साथ पर्यटकों के द्वारा ‘अलगाड़ नदी‘ मेंं मछली पकड़ी जाती है।
- इस मेले की शुरूआत सन 1866 में टिहरी नरेश नरेन्द्र शाह के द्वारा की गयी थी।
खतलिंग पर्यटन विकास मेला
इस मेले का आयोजन टिहरी जनपद में स्थित ‘खतलिंग ग्लेशियर क्षेत्र’ में पर्यटन को बढ़ावा देने तथा पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु किया जाता है।
- राज्य सरकार द्वारा इस मेले को अक्टूबर 2021 में राजकीय मेला घोषित किया गया।
रण भूत कौथीग
प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में लगने वाला यह मेला टिहरी जनपद के नैलचामी पट्टी के ठेला गॉंव में लगता है।
- यह मेला राजशाही के समय विभिन्न युद्धों में मरे लोगों की याद में ‘भूत नृत्य’ के रूप में होता है।
- इस मेले में तलवार की धार पर चलने, आग में शमशीरा (तलवारों) को चाटने, और युद्ध कला के रोंगटे खड़े करने वाले कारनामे इस मेले मे देखने को मिलते हैं।
चन्द्रबदनी मेला
यह मेला प्रतिवर्ष अप्रैल माह में टिहरी में स्थित चन्द्रबदनी मंदिर लगता है।
- इस मंदिर को गढ़वाल के चार शक्तिपीठों मे से एक माना जाता है।
पौढ़ी जनपद के मेले
गेंदा कौथिक
गेंदा कौथिक मेले का सन 1972 प्रतिवर्ष से मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित किया जाता है।
- यह मेला पौढ़ी के एकेश्वर, थलनाड़ी तथा डाडामण्डी द्वारीखाल के निकट ‘भटपुड़ी देवी के मंदिर‘ के पास होता है।
- इस मेले में गेंद खेला जाता है। जिसे पहाड़ी हॉकी कहा जाता है।
- गेंद के मैदान में पहुँचते ही उसके लिए छीना झपटी शुरू हो जाती है।
- जो पक्ष गेंद छीनने में विजयी होता वह उस गेंद को अपने गांव ले जाते हैं।
क्रान्ति दिवस मेला
इस मेले का आयोजन राज्य के पौढ़ी जनपद के मौसा चोपड़ाकोट (पीठासैण क्षेत्र) में प्रतिर्ष 23 अप्रैल को लगता है।
- इस मेले का आयोजन मुख्यत: प्रसिद्ध स्वतंत्र सेनानी ‘वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली’ स्मृति में किया जाता है।
- ब्रिटिश सेना में हवलदार रहे वीरचन्द्र ने सन 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान निहत्थे पठानों पर गाली चलाने से इनकार कर दिया।
- इस मेले को राज्य सरकार द्वारा 2022 में राजकीय मेला घोषित किया गया।
अन्य प्रमुख मेले
कुम्भ मेला
कुम्भ मेला हरिद्वार में स्थित गंगा नदी के तट पर प्रत्येक 12 वें वर्ष में आयोजित किया जाने वाला मेला है।
- यह मेला ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ‘गुरू के कुंभ राशि‘ और ‘सूर्य के मेष राशि‘ पर स्थित होने पर लगता है।
- हरिद्वार में सन 2010 और 2022 में कुम्भ मेला लगा था।
- चीनी यात्री हेनसांग ने इस मेले को ‘मोक्ष पर्व‘ कहा है।
अर्द्धकुम्भ मेला
अर्द्धकुम्भ मेला प्रत्येक कुम्भ के 6वें वर्ष में अर्द्धकुम्भ मेला लगता है।
- चार कुम्भ वाले स्थानों हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन व नासिक में से केवल दो स्थानों पर हरिद्वार और इलाहाबाद में लगता है।
Read Post ….उत्तराखंड की जनसंख्या