उत्तराखंड की मृदा

उत्तराखंड की मृदा

 


उत्तराखंड की मृदा

मिट्टी की प्रकृत‍ि, धरातलीय एवं जलवायु सम्‍बंधी भिन्‍नताओं केे कारण उत्तराखंड में अनेक प्रकार की मृदा पाई जाती है।

 

मृदा के प्रकार

तराई मृदा

राज्‍य के सबसे दक्षिणी भाग में देहरादून के सिरे से ऊधम सिंह नगर तक महीन कणों के निक्षेप से निर्मित तराई मृदा पाई जाती है। राज्‍य की अन्‍य मिट्टीयों की अपेक्षा यह अधिक परिपक्‍व तथा नाइट्रोजन एवं फास्‍फोरस की कमी वाली मृदा है।

  • यह मृदा समतल, दलदली, नम और उपजाऊ होती है। इस क्षेत्र में गन्‍ने व धान की पैदावार अच्‍छी होती है।

 

भाबर मृदा

तराई के उत्तर और शिवालिक के दक्षिण में यह मृदा पाई जाती है। हिमालय नदीयों से भारी निक्षेपों से निर्मित होने के कारण यह मिट्टी कंकड़ों-पत्‍थरों तथा बालू से निर्मित होते हैं। जो काफी छिछली होती है, जिस कारण जल नीचे चला जाता है। यह मृदा कृषि के लिए अनुपयुक्‍त है।

 

चारागाही मृदाएं

ऐसी मृदाएं निचले भागों में जलधाराओं के निकट नदियों एवं अन्‍य जल प्रवाहों के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है। इस मृदा को पांच भागों में विभक्‍त किया गया है।

  1. मटियार दोमट मृदा
  2. अत्‍यधिक चूनेदार दोमट
  3. कम चूनेदार दोमट
  4. गैर चूनेदार दोमट
  5. बलुई दोमट

 

टर्शियरी मृदा

ऐसी मिट्टी शिवालिक की पहाड़‍ियों तथा दून घाटी में पायी जाती है। जोकि हल्‍की, बलुई एवं छिद्रमय अर्थात आद्रता को कम धारण करती है।

इसमें वनस्‍पति एवं जैव प्रदार्थों की मात्रा कम होती है। लेकिन दून घाटी के मिट्टी में अन्‍य क्षेत्रों की अपेक्षा वनस्‍पति की अंश की अधिकता तथा आर्द्रता धारण करने की क्षमता अधिक होती है।

 

उत्तराखंड की खनिज सम्पदा


क्‍वार्टज मिट्टी

यह मिट्टी नैनीताल के भीमताल क्षेत्र में पायी जाती है। आद्य पुरा एवं मध्‍य कल्‍प के क्रिटेशियस युग में निर्मित शिष्‍ट, शेल, क्‍वार्टज, आदि चटटानों के विदीर्ण होने से निर्मित यह मिट्टी हल्‍की एवं बलुई तथा कृषि कार्य के लिए उपयुक्‍त होती है।

 

ज्‍वालामुखी मिट्टी

नैनीताल जिले के भीमताल क्षेत्र में यह मिट्टी पायी जाती है। आग्‍नेय चटटानों के विदीर्ण होने से निर्मित यह मिटटी हल्‍की एवं बुलई है। तथा कृषि कार्यों के उपयुक्‍त होती है।

 

दोमट मिट्टी

शिवालिक पहाड़‍ियों के निचले ढालों तथा दून घाटी में उपलब्‍ध इस मिटटी में हल्‍का चिकना पन के साथ-साथ चूना, लौह अंश एवं जैव प्रदार्थ विद्यामान रहते हैं।

 

भूरी लाल-पीली मिट्टी

नैनीताल, मसूरी व चकराता के निकट चूने एवं बलुवा पत्‍थर, शेल तथा डोलोमाइट चट्टानों से निर्मित यह मृदा पाई जाती है। इसका रंग भूरा, लाल अथवा पीला होता है।

ऐसा धरातलीय चट्टानों एवं वनस्‍पतिक अवशेंषों के कारण होता है। यह मृदा अधिक आद्रता ग्राही और उपजाऊ होती है।

 

भस्‍मी मिट्टी

यह मिट्टी कम ढालू स्‍थानों, पर्वत श्रेणियों के अंचलों तथा उप-उष्‍ण देशीय एवं समशीतोष्‍ण सम्‍भगों में पायी जाती है।

 

लाल मिट्टी

यह मिट्टी अधिकांशत: पहाड़ों की ढालों या पर्वतों के किनारे पायी जाती है। यह मिट्टी असंगठित होती है।

 

वन की भूरी मिट्टी

यह मिट्टी उत्तराखंड की अधिकांश वन्‍य भागों में पायी जाती है। इसमें जैव तत्‍व की अधिकता तथा चूना व फास्‍फोरस की कमी होती है।

 

उच्‍चतम पर्वतीय छिछली मृदा

यह मृदा कम वर्षा वाली उच्‍च भागों में मिलती है। अत्‍यधिक शुष्‍कता तथा वनस्‍पति के अभाव के कारण यह बिल्‍कुल अपरिपक्‍व होती है। इसकी परत पतली होती है।

उच्‍च मैदानी मृदा

यह मृदा 4000 मीटर से अधिक ऊॅंचाई पर पाये जाने वाले घास के मैदानों में मिलती है। शुष्‍क जलवायु, वायु, अपक्षय तथा हिमानी अपरदन के प्रभाव के कारण इन मिट्टीयों में प्राय: नमी की कमी पायी जाती है। यह हल्‍की क्षारीय तथा कार्बनिक प्रदार्थों के उच्‍च मात्रा से युक्‍त होती है।

 

उप-पर्वतीय मृदा

घास के मैदानों से निचले भागों में जहॉं देवदार स्‍प्रूस, ब्‍लूपाइन आदि के वन मिलते हैं। ऐसी मृदा पायी जाती है। जिसमें जीवाशमों की मात्रा अधिक होती है।

इस मृदा की ऊपरी परत रेतीली और संगठित होती है जबकि निचली परत असंगठित होती है। इनका रंग-लाल-भूरा अथवा पीला होता है। वर्षा के कारण इसमें आद्रता अधिक होती है।

 

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