उत्तराखंड की प्रमुख यात्राएं

उत्तराखंड की प्रमुख यात्राएं

 

उत्तराखंड की प्रमुख यात्राएं

 


कैलास मानसरोवर यात्रा

कैलास मानसरोवर की यात्रा का आयोजन जून से सितम्‍बर माह के बीच में किया जाता है। जिसे भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है। इस संस्‍था के अन्‍य सहयोगी संस्‍थाऍं भी हैं जो कैलास मानसरोवर की यात्रा को सरल और सुगम बनाने में भारतीय विदेश मंत्रालय का सहयोग करती है।

आयोजक संस्‍था – भारतीय विदेश मंत्रालय

अन्‍य आयेाजक सहयोगी संस्‍थाएं

  • भारत-तिब्‍बत सीमा बल (ITBP)
  • चीनी सरकार (तिब्‍बत)
  • सिक्किम पर्यटन विकास निगम (STDC)
  • कुमाऊँ मण्‍डल विकास निगम (KMVN)

 

कैलाश मंदिर के प्रमुख देवता – भगवान शिव तथा इस यात्रा कि अवधि – लगभग 25 से 30 दिन की होती है। इस यात्रा में यात्रियों की जांच ‘दिल्‍ली हर्ट एंड लंग्‍स इस्‍टीटयूट‘ के द्वारा की जाती है।

समुद्र तल से 22028 फीट की ऊंचाई वर स्थित मानसरोवर झील की बाहरी परिक्रमा का पथ 62 किलोमीटर का है। यहांं कोई भी मंदिर या मूर्ति नहीं है। यात्रियों को सरोवर के किनारे मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजा करनी पड़ती है।


कैलाश पर्वत शिखर की बनावट शिवलिंग की तरह है। तथा इस पर्वत शिखर के पत्‍थरों का रंग काला है। यात्री जब कैलाश मानसरोवर पहुंचते हैं तो वह सबसे पहले मानसरोवर झील में स्‍नान करते हैं, उसके बाद शिवलिंगाकार कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। जिसकी गोलाई लगभग

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नन्‍दा राजजात यात्रा

नन्‍दा राजजात यात्रा उत्तराखंड राज्‍य के गढ़वाल एवं कुमाऊ मण्‍डल की सांस्‍कृतिक एकता का प्रतीक है। यह विश्‍व की सबसे अनोखी 280 किलोमीटर की पद यात्रा है।

  • 280 किलोमीटर की इस पद यात्रा को चमोली के कांसुवा गांव के पास स्थित नौटी के नन्‍दा देवी मंदिर से होमकुण्‍ड तक की यात्रा को 19 से 20 दिन में पूरी की जाती है।
  • नन्‍दा राजजात यात्रा को प्रत्‍येक 12 वें वर्ष चांदपुरगढ़ी के वंशज कांसुवा गांव के राकुंवरों के नेतृत्‍व में आयोजित की जाती है।
  • पार्वती मदरांचल पर्वत की पुत्री थी। तथा पार्वती का विवाह कैलासपति शंकर से हुआ था।
  • इसीलिए पार्वती या नन्‍दा देवी को उत्तराखंड वासी अपनी विवाहित बेटी की तरह मानते हैं।
  • यह यात्रा उनके विदाई के रूप में कि जाती है।

 

एक ओर नौटी से राजजात यात्रा प्रारम्‍भ होती है। वहीं दूसरी ओर राज्‍य के विभिन्‍न क्षेत्रों अल्‍मोड़ा, कोट, डंगोली, कुरूड़ तथ आदि स्‍थानों पर राजजात यात्रा में शामिल होते रहते हैं।

यात्रा सर्वप्रथम नौटी से चांदपुर गढ़ उसके बाद तोप, भगोती, मींग थराली होते यात्रा नन्‍दकेसरी पहुँचती है। जो इस यात्रा का दसवॉं पड़ाव है।यहीं पर कुमाऊं के लोग अपनी कुलदेवी की डोलियों के साथ राजजात यात्रा में सम्मिलित होते हैं। यहां पर राजराजेश्र्वरी नन्‍दा का मिलन बधाण क्षेत्र की नन्‍दा तथा भोजपत्र छतोलियों से होती है।

नन्‍दकेसरी के बाद यात्रा देवाल, मुन्‍दोली होते हुए यात्रा 13वें दिन अंतिम गांव बाण पहुंचती है। जहां लाटू देवता का एक मंदिर है। यहॉं से नन्‍दादेवी के भारवाहक लाटू देवता भी यात्रा में सम्मिलित होते हैं। बाण गांव के बाद आगे कोई भी गांव या बस्‍ती नहीं है। इसलिए यात्रियों को आगे के लिए भोजन का समान स्‍वंय ले जाना पढ़ता है।

 


हिल जात्रा

हिल जात्रा का उत्‍सव राज्‍य के पिथौरागढ़ जपनद में मनाया जाता है। पिथौरागढ़ के सोरोघाटी हिलजाप उत्‍सव मुख्‍यत: कृषकों तथा पशुपालको का उत्‍सव है।

  • हिलजात्रा दो शब्‍दों से मिलकर बना है। हिल और जात्रा।
  • हिल का अर्थ होता है सीमार या (दलदली) वाली जगह तथा जात्रा का अर्थ होता है खेल या यात्रा। अर्थात सीमार या दलदली जगहों पर किए जाने वाले खेल को हिलयात्रा कहते हैं।
  • हिल जात्रा का आयोजन मुख्‍यत: वर्षा ऋतु के समय धान की रोपाई किया जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि सोरोघाटी का हिलजात्रा उत्‍सव नेपाल के ‘गोरखों’ की देन है।

 

उत्तराखंड का यह ‘विशिष्‍ट नाटय शैली’ है। जिसमें विभिन्‍न पात्र लकड़ी  से बने विभिन्‍न मुकुट पहनकर अभिनय करते हैं।

 

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वारूणी पंचकोसी यात्रा

यह यात्रा उत्तरकाशी में प्रतिवर्ष एकदिवसीय पंचकोशी यात्रा के रूप में मनायी जाती है।

  • इस यात्रा की शुरूआत मणिकर्णिका और बेड़थी में वरूणा (स्‍यालमगाड़) एवं भागीरथी के संगम पर स्‍नान के उपरान्‍त शुरू होता है।
  • जिसमें सभी यात्रीगण यहां से गंगाजल लेकर वरूणा पथ से होकर वरूणावत पर्वत की ओर चल पड़ते हैं। जो 15 किलोमीटर की पैदल पद यात्रा होती है।

 


पंवाली कांठा-केदार यात्रा

टिहरी गढ़वाल के पवाली कांठा से रूद्रप्रयाग के केदारनाथ तक की जाने वाली इस यात्रा को देवी-देवताओं के साथ अगस्‍त-अक्‍टूबर के महीने में की जाती है।

  • यह यात्रा पंवाली कांठा बुग्‍याल से माट्या बुग्‍याल तथा त्रिजुगी नारायण होते हुए केदार नाथ पहुँचती है।

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