अलंकार के भेद

अलंकार के भेद


अलंकार

अलंकार (अलम् + कार) से मिलकर बना है। अलम्  का अर्थ होता है सजावट करना। हिन्‍दी भाषा में काव्‍यों को सजाने के लिए जिस चीज की जरूरत होती है। उसे अलंकार कहते हैं।

 

अलंकार के भेद

अलंकार के दो प्रकार के भेद होते हैं। मुख्‍य और कुल।

मुख्‍य – 2 कुल – 3
शब्‍दालंकार शब्‍दालंकार
अर्थालंकार अर्थालंकार
उभयालंकार

 


शब्‍दालंकार के भेद

मुख्‍य -3 कुल -5
अनुप्रास अलंकार अनुप्रास अलंकार
यमक अलंकार यमक अलंकार
श्‍लेष अलंकार श्‍लेष अलंकार
वक्रोक्ति अलंकार
पुनरोक्ति अलंकार

 

अनुप्रास अलंकार

जब कभी वर्णों की आवृत्ति (बार-बार) हो अर्थात एक या एक से अधिक बार हो तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।

जैसे – 

  • रनि,नुजा, ट, माल।

यहां पर वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रही है। इसलिए यह एक अनुप्रास अलंकार है।

  • कूलन में, लियन में, छारन में, कुंजन में, क्‍यारिन में, कालीन में, लिकत में।

यहां पर वर्ण की आवृत्ति बार-बार हो रही है। इसलिए यह एक अनुप्रास अलंकार है।

 


अनुप्रास अलंकार के भेद

  1. छेकानुप्रास
  2. वृत्‍यानुप्रास
  3. श्रुत्‍यानुप्रास
  4. अन्‍त्‍यानुप्रास
  5. लाटानुप्रास

 

छेकानुप्रास

जब किसी वर्ण की आवृत्ति एक बार होती है। तो उसे छेकानुप्रास अलंकार कहते हैं।

जैसे – 

  • हिमन हिला की भली।

यहां पर र वर्ण की आवृत्ति एक बार हुई है।

  • इस रूणा लित हृदय में।

इस वाक्‍य में क वर्ण की आवृत्ति एक बार हुई है।

 


वृत्‍यानुप्रास

जब किसी वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हो, तो उसे वृत्‍यानुप्रास अलंकार कहते हैं।

जैसे –

  • रनिनुजा, माल रूवर बहुछाए।

इस वाक्‍य में त वर्ण एक से ज्‍यादा बार हुई है। इसलिए इसे हम वृत्‍यानुप्रास कहेगें।

 


श्रुत्‍यानुप्रास

श्रुत्‍या + अनुप्रास (श्रुत्‍यानुप्रास) श्रुत्‍या का अर्थ होता है सुनने में अर्थात जहां पर सुनने अनुप्रास लगे वहां पर श्रुत्‍यानुप्रास होता है।

जैसे –

  • कह, नट, रीझ, खिझ, मिल, खिल, लजिजा है।

अभी तक आगे वाले अनुप्रासों में हमनें देखा की आगे के वर्ण आपस में मिलते हैं। लेकिन श्रुत्‍यानुप्रास में आखरी वाला वर्ण आपस में एक-दूसरे से मिलते हैं।

इससे यह निर्ष्‍कश निकलता है कि जब कभी हमें इस प्रकार से अंतिम वर्ण समान देखने को मिले तो वह श्रुत्‍यानुप्रास कहलायेगा।

 

  • पाप प्रहार प्रकट क सो
  • भरी क्रोध जल जा न को

 


अन्‍त्‍यानुप्रास/तुकनुप्रास

अन्‍त्‍य + अनुप्रास (अन्‍त्‍यानुप्रास) यहां पर अन्‍त्‍य का अर्थ होता है कि ‘अन्‍त में’ अर्थात जब किसी पंक्ति का अंतिम वर्ण समान हो तो उसे अन्‍त्‍यानुप्रास कहते हैं।

जैसे –

  • नाक शंंभु धनु भंजनिहारा
  • होई है कोई इक दास तुम्‍हारा। (तुलसीदास)

 


लाटानुप्रास

जहां एक वाक्‍य दो या दो से अधिक बार आ जाए उसे लाटानुप्रास कहा जाता है। लेकिन इनका अन्‍वय करने पर अर्थ अलग-अलग होता है।

 


यमक अलंकार

जहां एक शब्‍द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार आए, लेकिन इस शब्‍दों की आवृत्ति का जो अर्थ आता है। वह अलग-अलग होता है। उसे यमक अलंकार कहते हैं।

जैसे –

  • जे तीन बेर खाती थी, ते तीन बेर खाती है।

यहां पर पहले तीन बेर का अर्थ है कि तीन बार खाती थी। वहीं दूसरे तीन बेर का अर्थ है कि यहां पर बेर की संख्‍या बताई गयी है।

 

  • काली घटा का घमण्‍ड घटा।

घटा – बादल
घटा – घट गया।

 

श्‍लेष अलंकार

श्‍लेष अलंकार में श्‍लेष का अर्थ होता चिपकना। अर्थात कहने का तात्‍पर्य है कि श्‍लेष अलंकार में शब्‍द एक बार आता है।

जैसे – 

  • चरन धरन चिंता करत
  • फिर चितक चहुँ ओर।
  • सुबरन को ढूंढत फिरत।
  • कवि व्‍यभिचारी चोर।

 

यहां पर चरन का अर्थ पंक्ति माना गया है। वहीं दूसरी तरफ चरन का अर्थ पैर से भी होता है। उसी प्रकार से सुबरन का मतलब सुन्‍दर स्‍त्री भी होता है। वहीं दूसरी तरफ सुबरन का मतलब सुन्‍दर वर्ण  तथा सोना भी होता है।

 


वक्रोक्ति अलंकार

वक्रोक्ति अलंकार एक ऐसा अलंकार होता है जिसमें कहा कुछ और जाय तथा अर्थ कुछ और निकला जाय।

  • द्वार पर को, प्रिये हरि।
  • तरू शखा जाहू। 
  • प्रिये मधुसूदन।
  • तेरो का काम।

 


पुनरोक्ति अलंकार

धीरे-धीरे फिर बढ़ा चरण।
बाल कोलियों की प्रांगण।

 

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