उत्तराखंड के पंच प्रयाग।

उत्तराखंड के पंच प्रयाग


उत्तराखंड के पंच प्रयाग

उत्तराखंड के पंच प्रयाग विष्‍णुप्रयाग, नन्‍दप्रयाग, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग तथा देवप्रयाग उत्तराखंड की प्रमुख नदियों के संगम पर स्थित है।

  • केदारखण्ड के अंर्तगत गढ़वाल भू-भाग में ’पंच बदरी’ और ’पंच केदार’ की भाँति पंच प्रयाग आज भी धर्मपरायण एवं श्रद्धालु जनमानस के लिए सुपरिचित है। गढ़वाल मण्डल में स्थित बद्रीनाथ मार्ग पर सभी पंच प्रयाग स्थित हैं।

 

  • पंच प्रयागों में से तीन प्रयाग विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, व कर्णप्रयाग राज्य के चमोली जनपद में स्थित हैं। और वहीं रूद्रप्रयाग (रूद्रप्रयाग जनपद) में तथा ‘देवप्रयाग‘ (टिहरी जनपद) में स्थित है। 

 


प्रयाग शब्‍द का अर्थ

यदि हमें उत्तराखंड के पंच प्रयागों का अध्‍ययन करें, तो सबसे पहले ‘विष्णुप्रयाग’ फिर ‘नंदप्रयाग’, उसके बाद ‘कर्णप्रयाग’  फिर ‘रूद्रप्रयाग, और अंतिम में  ‘देवप्रयाग’ अध्‍ययन करना होगा

 


पंच प्रयागों का अध्‍ययन करने से हमें (प्रयाग शब्द का अर्थ) जानना होगा।

  • प्रयाग शब्द का अर्थ होता है, प्रयाग अर्थात (दो नदियों का संगम)। जिस स्थान पर दो नदियां एक-दूसरे से आपस में मिलती है। उस स्थान को (प्रयाग या संगम) कहा जाता है।

 

  • भारत में नदियों के संगम को बहुत पवित्र माना जाता है। क्योंकि नदियों को भारत में देवी का रूप माना जाता है। प्रयागों में गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम के बाद इन पाँच संगम को सबसे पवित्र माना जाता है। उत्तराखंड के इन पंच प्रयागों या ( तीर्थं स्‍थानों ) के माध्यम से हमें उन स्थानों के बारे में अधिक से अधिक से जानकारीयां मिलती है। जिन स्थानों पर पंचप्रयाग स्थित है।

 


पंच प्रयाग

  • विष्‍णुप्रयाग
  • नन्‍दप्रयाग
  • कर्णप्रयाग
  • रूद्रप्रयाग
  • देवप्रयाग

 


1) विष्णुप्रयाग – Vishnuprayag 

  • विष्णुप्रयाग पंच प्रयागों में पहला प्रयाग है। विष्णुप्रयाग ’पश्चिमी धौली गंगा’ तथा ’अलकनंदा’ नदियों के संगम पर स्थित है।

                                                             विष्‍णुप्रयाग ( अलकनन्‍दा व पश्चिमी धौली गंगा का संगम) 


  • धौली गंगा को (विष्णुगंगा) के नाम से भी जाना जाता है। अलकनन्दा नदी राज्य में स्थित सतोपंथ ग्लेशियर से निकलती है।

 

  • जबकि धौलीगंगा गढ़वाल क्षेत्र व तिब्बत की सीमा पर स्थित नीती दर्रे के निकट से शुरू होती है। इस स्थान पर भगवान विष्णु का प्राचीन मंदिर व विष्णु कुण्ड दर्शनीय है। जो हिन्दओं के धार्मिक आस्था का प्रमुख केन्द्र है। विष्णुप्रयाग बद्रीनाथ मोर्ट-मार्ग पर स्थित जोशीमठ से लगभग 10 किलोमीटर आगे है।

 

  • इसी स्थान से सूक्ष्म-बद्रीनाथ क्षेत्र प्रारंभ होता है। विष्णुप्रयाग संगम आवास रहित व दुर्गम क्षेत्र है। प्राचीन समय में  देवऋषि  नारद ने अष्टाक्षरी मंत्रो का जाप तथा विष्णु भगवान की आरधना कर वरदान प्राप्त किया। इस संगम के दोनों ओर (जय- विजय) पर्वत इस भाँति खड़े हैं, जैसे भगवान विष्णु के द्वारपाल हो।

 


2) नन्‍दप्रयाग – Nandaprayag

  • नन्दप्रयाग‘ ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग पर (अलकनंदा और नन्दाकिनी) नदियों के संगम पर स्थित है।

Panch prayag ke naam 

 नन्दप्रयाग (अलकनन्‍दा व नन्‍दाकिनी नदी का संगम) 


  • इस स्थान से स्थूल बद्रीनाथ क्षेत्र प्रारंभ होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराज नन्द ने यहाँ तपस्या कर भगवान विष्णु को पुत्र रूप  में प्रााप्‍त किया । नन्दप्रयाग अपनी सुन्दरता से सैलानियों को आकर्षित करता है।

 


3) कर्णप्रयाग – Karnaprayag 

  • कर्णप्रयाग चमोली जनपद में अलकनन्दापिंडर नदी के संगम पर स्थित प्रयाग है।

Panch prayag ke naam                                                         कर्णप्रयाग (अलकनन्‍दा व पिंण्‍डर नदी का संगम) 


  • पिंडर नदी (पिंडारी ग्लेशियर) से निकल कर कर्णप्रयाग में अलकनन्दा नदी के साथ मिलती है।

 

  • कहते हैं कि यहाँ पर महादानी कर्ण ने सूर्यदेव की अराधना कर अभेध कवचकुंडल की प्राप्ती की थी। और इन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम कर्णप्रयाग पड़ा।

 

  • इस स्‍थान पर ‘माँ उमादेवी‘ का प्राचीन मंदिर ‘कर्ण मंदिर, तथा बद्रीनाथ मंदिर समिति का विश्राम गृह भी है। कर्णप्रयाग, चमोली जनपद का एक प्रमुख केन्द्र स्थान है। यहाँ से एक मोटर मार्ग (नन्दादेवी सिद्धपीठ) नौटी के लिए भी जाता है।

 


4) रूद्रप्रयाग – Rudraprayag 

  • रूद्रप्रयाग (अलकनन्दा‘ तथा ‘मन्दाकिनीनदियों के संगम पर स्थित राज्‍य का चौथा प्रयाग है।

उत्तराखंण्‍ड के पंचप्रयाग                                                        रूद्रप्रयाग ( अलकनन्‍दा व मंदाकिनी नदी का संगम) 


  • मन्दाकिनी नदी‘ का उदगम केदारनाथ के निकट (चाराबाड़ी हिमनद) से होता है।

 

  • मान्‍यता है कि ‘देवर्षि नारद‘ ने यहाँ पर ‘ऊँ नमोः शिवाय‘ मंत्र से (रूद्र भगवान) अर्थात भगवान शिव की अराधना करते हुए संगीत शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। इसी कारणवश रूद्रप्रयाग को रूद्रावर्त भी कहते थे।

 

  • रूद्रप्रयाग से ही केदारनाथ धाम का मुख्य मार्ग प्रारंम होता है। इस संगम क्षेत्र में (मॉं चामुंडा देवी और रूद्रेश्वर महादेव) का मंदिर भी स्थित है।

 


5) देवप्रयाग – Devprayag 

  • ‘अलकनन्दा और भागीरथी’ नदीयों के संगम पर ‘देवप्रयाग तीर्थं’ स्थित है।

उत्तराखंण्‍ड के पंचप्रयाग                                             देवप्रयाग (अलकनन्‍दा व भागीरथी नदी का संगम) गंगा नदी का निर्माण   


  • भागीरथी नदी का उदगम राज्य के उत्तरकाशी जनपद के गोमुख (गंगोत्री ग्लेशियर) से होता है।

 

  • गढ़वाल क्षेत्र में ‘भागीरथी नदी’ को ‘सास’ और ‘अलकनंदा नदी’ को ‘बहू’ कहा जाता है। क्योंकि भागीरथी नदी तीव्र गति तथा तेज गर्जना के साथ देवप्रयाग में अलकनन्‍दा नदी से मिलती है। जबकि अलकनन्दा नदी शांत-स्वभाव के साथ देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलती है। इसीलिए इन्हें सास और बहू का नाम दिया गया है।

 

  • देवप्रयाग  समुद्रतल  से (1500 फीट ) की ऊँचाई पर स्थित है,देवप्रयाग में शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं। रघुुनाथ मंदिर द्रविड़ शैली से निर्मित है। और देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है।

 


Read More Post…उत्तराखंंड राज्‍य के प्रतीक चिन्‍ह

 

Visit Facebook Page ….

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share
Share
Uttarakhand Foundation Day Govind National Park Corbett National Park India China relations Musical Instruments Of Uttarakhand