उत्तराखंड का इतिहास – Lession 1

उत्तराखंड का इतिहास

 


उत्तराखंड का इतिहास

यदि हम पुरातात्विक साक्ष्‍यों कि बात करें तो सर्वप्रथम उत्तराखंड में कप मार्क्‍स की खोज की गई थी। उत्तराखंड में कप मार्क्‍स सर्वप्रथम  डॉ. हेनुवुड के द्वारा सन 1854 खोजे गये थे। जिस कारण से इन्‍हें उत्तराखंड के पुरातात्विक विभाग का जनक कहा जाता है।

  • सर्वप्रथम कपमार्क्‍स की खोज डाॅ.हेनवुड द्वारा चम्पावत के देवीधुरा नामक स्थान पर स्थित बाराही धाम मंदिर में की गई थी।
  • देवीधुरा के इस स्थान पर पाषाण नामक मेला लगता है, जो आषाढ़ी कौतिक तथा भगवाल मेले के नाम से भी जाना जाता है।
  • उत्तराखंड में पुरातात्विक तत्‍वों की खोज सर्वप्रथम सन 1854।
  • भारत में पुरातात्विक विभाग का जनक अलैंग्‍जैण्‍डर कनिघंम को कहा जाता है।

 

 

 

रिबेट कॉर्नक

1857 में फिर से कप मार्क्‍स की खोज की गयी। लेकिन इस बार रिबेट कॉर्नक ने अल्‍मोड़ा जिले के (द्वारहाट) चन्‍द्रेश्‍वर मंदिर में कप मार्क्स खोजे।

ओखली
रिबेट कार्नाक ने जब कप मार्क्‍स की खोज की तो उन्‍हें 12 समान्‍तर पटटियों में 200 कप मार्क्‍स की खोज की थी।
  • रिबेट काॅर्नक ने जब कप मार्क्‍स की खोज की तो उन्‍हें 12 समान्‍तर पटटियों में 200 कप मार्क्‍स मिले थे।
  • रिबेट कॉर्नक के द्वारा खोजे गये कप मार्क्‍स की तुलना यूरोप के कप मार्क्‍स से की गयी है।
  • द्वारहाट को कुमांऊ का खजुराहो बोला जाता है। क्‍योंकि यहां नग्‍न अवस्‍था में मूर्तियां मिली हैं।
  • पूरे उत्तराखंड में नग्‍न अवस्‍था में मूर्तियां द्वाराहाट में मिलती हैं।
  • उत्तराखंड में मंदिरों की नगरी द्वाराहाट को कहा जाता है। क्‍योंकि यहां पर Group of temple है।
  • द्वाराहाट को मीठी मूलियों का क्षेत्र कहा जाता है।

 

अभी तक उत्तराखंड में जितने भी पुरातात्विक साक्ष को ढूंढा गया वह सभी अंग्रेजों के द्वारा ढूंढे गए थे लेकिन अब


स्‍वतंत्रता के बाद उत्तराखंड के पुरातात्विक विभाग के एक वैज्ञानिक ने देवीधुरा के बाराही धाम मंदिर का दुबारा से सर्वेक्षण किया।

सन 1970 में मुनीश जोशी जी ने कप मार्क्‍स के बारे में और भी जानकारी पाने के लिए चंपावत के देवीधुरा के मंदिर का दुबारा सर्वेक्षण ।

क्‍या उत्तराखंड में कप मार्क्‍स खोज अंग्रेजो ने ही खोजे क्‍या। नहीं

 

यशोधर मठपाल

यशोधर मठपाल जी ने भी उत्तराखंड में कर्प मार्क्‍स की खोज रामगंगा नदी घाटी से की।

  • मठपाल जी ने रामगंगा नदी घाटी के पास स्थित नौला गांव से 72 कप मार्क्‍स की खोज की।
  • मठपाल जी ने सन 1983 में लोक संस्‍कृति संग्रहालय का निर्माण नैनीताल जनपद के भीमताल खुटानी किया।

 

यशवंत सिंह कठौच

यशवंत सिंह कठौच जी ने कप मार्क्‍स की खोज पिश्चिमी नय्यार घाटी के ( मंडल गांव) गोपेश्‍वर में की थी। जो प्रदेश के चमोली जनपद में स्थित है।

  • इन्‍होंने उत्तराखंड का नवीन इतिहास नामक पुस्‍तक लिखी है।
  • मंडल घाटी को गढ़वाल का चैरापूंजी कहा जाता है।
  • उत्तराखंड का चैरापूंजी नरेन्‍द्रनगर (टिहरी) को कहा जाता है। क्‍योंकि यहां पर उत्तराखंड की सबसे ज्‍यादा बारिश होती है।
  • कुमांऊ का चैरापूंजी सूखीढ़ाक को कहा जाता है, जो राज्‍य के चंपावत जिले में  स्थित है।

 


फड़का नोली और पेटशाल

फड़का नोली और पेटशाल दोनों अल्‍मोड़ा जनपद में स्थित हैं। इन दोनों स्‍थानों की खोज यशोधर मठपाल जी ने की थी। 

  • फड़का नोली की खोज सन 1985 में वहीं पेटशाल की खोज सन 1989 में यशोधर मठपाल जी द्वारा की गयी थी। 
  • वहीं यशोधर मठपाल जी का नैनीताल जनपद के भीमताल के खुटानी गांव में लोक संस्‍कृति संग्रहालय हैं। जिसकी स्‍थापना यशोधर मठपाल जी ने 1983 में की थी।
  • फड़का नोली में तीन गुफाओं की खोज की गयी है। जिसमें से तीसरी गुफा में लाल रंग से शंकु लिपि का प्रयोग किया गया है।
  • वहीं पेटशाल से कथई रंग के चित्र मिले हैं।

 


फलसीमा

फलसीमा भी एक महत्‍वपूर्ण स्‍थान हैं, जो प्रदेश के अल्‍मोड़ा जनपद में स्थित है।

फलसीमा की महत्‍वपूर्ण बातें

  • फलसीमा से कत्‍थक शैली में नृत्‍य करते हुए चित्र मिले हैं।
  • भारत में 8शास्‍त्रीय नृत्‍य हैं, जिसमें से एक कत्‍थक नृत्‍य भी है। यह नृत्‍य भारत के U.P. राज्‍य में किया जाता है।
  •  फलसीमा से योगमुद्रा में चित्र मिला है। जिससे यह पता चलता है, कि योग उस सभ्‍यता से प्रचलित था। योग दिवस 21 जून को मनाया जाता है। तथा योगा की अंतराष्‍ट्रीय राजधानी ऋषिकेश है, जो उत्तराखंड राज्‍य में स्थित है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन 21 जून होता है। वहीं दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन 21 जून होता है। 

 

उत्तराखंड का प्रौगैसिक इतिहास

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